सत्यकाम
आज से ठीक दस साल पहले अगस्त १९९९ में जब गाइसल में ट्रेन हादसा हुआ था, तब के रेल मंत्री नीतीश कुमार ने नैतिकता की दुहाई देकर मंत्री पद से इस्तीफा कर दिया था। उस वक़्त केंद्र में - एक ऐसी सरकार थी, जिसने विश्वास मत खो दिया था ।
और जिसके मुखिया राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंप चुके थे । चुनाव संपन्न होने और नयी सरकार के गठन तक- जैसी परम्परा है - राष्ट्रपति ने वाजपेयी जी को सरकार में रहने को कहा था । ऐसी सरकार कामकाजी सरकार कही जाती है, और इससे इस्तीफा देने का कोई मतलब नहीं होता ।मुहावरे में इसे ऊँगली खुरच कर शहादत देना कहा जा सकता है। यह नौटंकी नीतीश कुमार ने की थी ।उस पर तुर्रा यह था की मैं पिछड़ी जाति का हूँ , इसलिए मेरे त्याग को नहीं समझा गया । वे अपनों के बीच फुनफुनाते थे कि मैं यदि ऊँची जाति का होता तो मुझ पर सम्पादकीय लिखे जाते । नीतीश कुमार ऐसी आत्ममुग्धता में अक्सर डूबे होते हैं । वे खुद परिक्षार्थी और खुद ही परीक्षक होते हैं । पिछले तीन साल से अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड खुद जारी कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं ।
लेकिन अबकी इस बाढ़ अथवा जलप्लावन ने उनकी ऐसी की तैसी कर दी है ।
जाने अब उनकी नैतिकता इस्तीफा की सिफारिश कर रही है या नहीं । गाइसल में पटरी टूटी थी, किसी शरारत के कारण । अबकी तटबंध टुटा है, सरकार की ग़ैर ज़बावदेही के कारण । तब कुछ सौ लोग तबाह हुए थे, अबकी लाखों लोग तबाह हुए हैं । मै नहीं जनता नीतीश कुमार के मन में इस्तीफा की बात उठ रही है या नहीं । विपक्ष चाहेगा कि वो इस्तीफा कर दें ताकि उनके लिए मार्ग प्रशस्त हो जाए । ऐसी बाढ़ देख कर उनके हांथों में खुजली हो रही होगी । लेकीन इन पंक्तियों का लेखक ऐसा नहीं चाहेगा । नीतीश कुमार को ऐसी बातें मन से निकाल देनी चाहिए और राजधर्म का पालन करना चाहिए ।
लेकीन काश नीतीश कुमार राजधर्म का पालन करते । जिस मंसूबे से राज्य की जनता उन्हें सरकार में लायी थी - उसके मंसूबों पर पानी फेर रहे हैं नीतीश कुमार । उन्हें फुर्सत निकाल कर अपनी स्थिति का आकलन करना चाहिए।
यह बाढ़, जिसे नीतीश कुमार प्रलय कह रहे हैं की स्थिति क्या एक दिन में बनी है- अचानक बनी है ? नहीं! यह हादसा नहीं है । यह राज्य सरकार की नाक़ामियों का कुफल है। इसे मुख्यमंत्री स्वीकारें । नहीं स्वीकारेंगे तो उसका निराकरण भी नहीं कर पाएंगे ।
जरा देखिये कि तटबंध जब दरकनें ले रहा था तो नीतीश कुमार और उनके लोग क्या कर रहे थे । इनके दो प्रिये पालतू इस दरम्यान एक केन्द्रीय मंत्री की ज़मीन - जायदाद की नाप- जोख कर रहे थे । मुख्यमंत्री का पूरा सचिवालय उनके लिए मीडिया - मसाला तैयार करने में लगा था । पखवारे भर के उन भाषणों के क्लिप देखिये जिसे नीतीश कुमार धुंआधार दे रहे थे । वे लालू को जीरो पर आउट कर रहे थे । पुरे बिहार में उनकी ध्वजा फहरा रही थी । उनके चापलूस उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा रहे थे । पता नहीं क्या- क्या बना रहे थे । बाँध १८ तारीख को टूटता है । नीतीश कुमार की खुमारी २४ तारीख को टूटती है । चिल्लाते हैं - जा रे, यह तो प्रलय है । नीतीश कुमार ! देखा! चापलूसों ने आपको कहां पहुंचा दिया । छोड़िये प्रधानमंत्री की कुर्सी । मुख्यमंत्री की कुर्सी तो बचाइए । और छोड़िये मुख्यमंत्री- तंत्री की कुर्सी -अपने आत्मधिक्कार के दलदल से तो खुद को निकालिए । हजारों लोग बाढ़ से निकल कर सुरक्षित स्थानों पर आ रहे हैं । आप भी उस जानलेवा बाढ़ से निकलिए जिसमे गरदन तक डूब चुके हैं । आपके इर्द -गिर्द सांप - बिच्छुओं और लाशों का ढेर लग गया है । इनके बीच से निकलिये । केवल जनता को ही मत बचाइये- खुद भी बचिये । तरस आती है नीतीश कुमार आप पर । जिस अरमान से जनता आपको लायी थी, उसे अरमानों को चूर-चूर कर दिया । दुनिया भर के लंपट, चापलूस अपने इर्द- गिर्द जुटा लिये । कोई मुक़दमेबाज है तो कोई छुरेबाज, कोई जालसाज है तो कोई कोयला- किराना माफ़िया । ऐसे ही लोग आपके चरगट्टे के स्थायी सदस्य हैं । इनके साथ ही रोज आपका उठना-बैठना होता है । आपका मंत्रीपरिषद संदिग्ध आचरण वालों का जमावड़ा है । सबसे नालायक अधिकारियों को आपने अपने इर्द-गिर्द जमा कर रखा है । क्योंकि अफसर चुनने में जाति आपकी कसौटी होती है । नवम्बर आ रहा है और आप फिर रिपोर्ट कार्ड जारी कीजिएगा । आप से मेरा निवेदन होगा कि एक बार ईमानदार भाव से लालू के तीन साल से अपने इस तीन साल को तौलिये । एक नॉन सीरियस और जोकर नेता के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा वह आदमी तीसरे साल में गरीबों-पिछड़ों का मसीहा बन गया था । उनका पतन तो तब शुरू हुआ जब दंभ उन पर हावी हो गया और अपने क़ाबिल साथियों को नज़रअंदाज कर वो चापलूस और लंपट तत्त्वों से घिरने लगे । लेकीन आपने तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही राणा के प्रतिरूपों के हाथों अपने को सौंप दिया। और इसका नतीजा है कि एक नायक वाली आपकी छवि मुख्यमंत्री पद पाते वक़्त थी वह आज कुसहा बाँध की तरह ध्वस्त हो चुकी है । लेकीन इतने पर भी बिहार की जनता आप से नाउम्मीद नहीं हुई है । वह आपसे आज भी- अब भी उम्मीद करेगी की चपंडुकों के चरगट्टे से आप बाहर निकलेंगे और अपने ह्रदय पर हाथ रख कर अपनी ही धड़कनों को सुनेंगे। यदि ऐसा आपने किया तो विश्वास मानिये, हर धड़कन से यही स्वर उभरेगा -सुधरो नीतीश कुमार, सुधरो । खुदा के लिये सुधरो, बिहार के लिये सुधरो । (साभार ‘फ्री थिंकर्स’)