सनातन धर्मावलिम्बियों और लोक आस्था का महान पर्व विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला हर वर्ष की भांति विष्णुपद मंदिर के पास स्थित अंत: सलिला फल्गु नदी के तट पर प्रारम्भ हो गया है पितृपक्ष मेला आश्विन माह कृष्ण पक्ष प्रतिपदा दिन रविवार विक्रम सम्वत 2065 तदनुसार 14 सितम्वर से शुरु होकर 17 दिनों तक चलेगी। पितृपक्ष की अवधि में यहां 17 दिनों का जो मेला लगता है वह बड़ा अनूठा है। इस मेले में देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु गयाजी आते हैं और अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिण्डदान, तर्पण तथा श्राद्ध आदि का अनुष्ठान करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार गयाजी मे श्राद्ध-कर्म करने पर पितरों की भटकती आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष की अवधि में सभी भारतवासियों के पुर्वजों की अशरीरी आत्मा विष्णुनगरी गयाजी मे आकर वास करती है और आत्माएं अपने पुत्र-पौत्रों से पिण्डदान की आकांक्षा करती हैं।
पितृपक्ष वस्तुत: आत्मा का परमात्मा में एकीकरण तथा जीव और ब्रह्म के एकाकार स्वरुप का संगम पर्व है।
पिण्डदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है और इस कर्म के लिए गया धाम को सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ माना जाता है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की ज़मीन से शुरु हुआ यह श्राद्ध-कर्म यहां इस घोर कलयुग मे भी निर्बाध गति से जारी है ।
शास्त्रों के अनुसार जन्म लेने के बाद मनुष्य के सिर पर तीन तरह का ॠण रहता है - देव ॠण, गुरु ॠण एवं पितृ ॠण। आत्म चिन्तन, लेखन, प्रवचन तथा गुरु सेवा से व्यक्ति को गुरु ॠण से छुटकारा मिल जाता है। इसी प्रकार श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान से व्यक्ति पितृ ॠण से मुक्त होता है। इन तीनो प्रकार के ॠणों में पितृ ॠण मुख्य है। कहा जाता है कि पितर जितने तृप्त होंगे पारिवारिक विकास उतना ही अधिक होगा। अत: पितरो को तृप्त करने के लिए उनका श्राद्ध कर्म करना आवश्यक है। यह भी कहा जाता है कि पिण्डदान करने से एक सौ आठ कुल और सात पीढ़ीयों का उद्धार होता है और कर्ता को अश्वमेघ यज्ञ करने जैसा फल मिलता है।
पितृपक्ष के दिनो में गया धाम धार्मिक भावना से ओत-प्रोत रहता है। हरेक के मन में एक ही भाव रहता है कि वे अपने पूर्वजो की शांति और मोक्ष के लिए इन दिनो में यथा सम्भव समयानुसार श्राद्ध एवं अनुष्ठान सफलतापुर्वक सम्पन्न कर ले ताकि उनके परिवार को पूर्वजो का आशिर्वाद मिले, उनका परिवार फले-फुले तथा सुख-शान्ति रहे। गयाजी आने वाले धर्मावलंबी पूरी आस्था और निष्ठा के साथ इस पुण्य कार्य को सम्पादित करते हैं।
वैसे तो किसी न किसी रुप से सभी जाति एवं धर्म के लोग अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं परन्तु हिन्दू धर्म में पूर्वजों के प्रति जो सम्मान और श्रद्धा का भाव है वो अन्यत्र कहीं नहीं दिखता है। इस परम्परा का निर्वाह सदियों से सनातन हिन्दू धर्म के लोग करते आ रहे हैं। धर्म ग्रन्थों मे भी इस मेले की महत्ता वर्णित है। स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम राम यहां आकर अपने पितरों के मोक्ष हेतू पिण्ड दान किये थे। सर्व-धर्म- समभाव पर आधारित सनातन धर्म में न केवल अपने पितरों के मोक्ष की कामना करते हैं बल्कि इस ब्रह्माण्ड के उन सभी बन्धु-बान्धव, देवर्षी, कीट-पतंग, वृक्ष एवं सभी प्राणियों को भी जल देकर पिण्डदान करते हुए मोक्ष की कामना करते हैं। गयासुर राक्षस के मस्तक पर भगवान विष्णु ने अपना चरण रखकर उसे मोक्ष प्रदान किया था। उसी चरण के दर्शन कर श्रद्धालु पिण्डदान के पश्चात विष्णुपद मंदिर आकर अपने लिये भी मोक्ष की कामना करते हैं।
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