प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन, वर्धा के तत्वाधान में 10-14 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया। यह सम्मेलन हिन्दीतर भाषी श्री अनंत गोपाल शेवड़े की प्रेरणा और प्रयास से संभव हो सका था। इसका उदघाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने किया था । मारीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर शिव सागर राम गुलाम मुख्य अतिथि थे तथा इसकी अध्यक्षता भी उन्होनें ही की थी । इस सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था । मांग उठाई गयी थी कि संयुक्त राष्टृ संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी जाए तथा वर्धा में विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना की जाये । इस तरह के अन्य प्रस्ताव भी सम्मेलन में पारित किए गए । आचार्य विनोबा भावे द्वारा भेजा गया सन्देश भी पढ़ा गया । समापन सामारोह में प्रख्यात कवियत्री महादेवी वर्मा ने मुख्य वक्ता के रुप में अपने विचार व्यक्त किये थे। 14 जनवरी, 1975 को राष्टृ भाषा प्रचार समिति, वर्धा के कार्यालय प्रांगण में विश्व हिंदी विद्यापीठ की नींव रखी गयी जो आज महात्मा गांधी हिंदी अंर्तराष्टीय विश्व विद्यालय के नाम से जाना जाता है ।
वर्ष 1976 में 28-30 अगस्त के बीच मारीशस की राजधानी पोर्ट लुई में द्वितीय विश्व
हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ । इसकी अध्यक्षता तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डा0 कर्ण सिंह ने की थी । इस सम्मेलन का बोध वाक्य था – "वसुधैव कुटुम्बकम"। 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया था। इसे संबोधित करने वाले विभिन्न विद्वानों में डा0 निकोल बलबीर (फ़्रांस), डा0 लोचर लुत्से (जर्मनी), डा0 फ़ादर कामिल बुल्के, श्री अमृत लाल नागर और मारीशस के युवा एवं क्रीड़ा मंत्री श्री दयानंद वसंत राय शामिल थे ।
तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 1983 में 28-30 अक्टुबर के बीच नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने की थी। सम्मेलन में 6566 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें 260 प्रतिनिधि विदेशों से पधारे थे । इसका समापन तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने किया था । अंर्तराष्टीय भाषा के रुप में हिंदी के प्रसार की सभावनाएं और प्रयास तथा आधुनिक भारत में हिंदी की पत्रकारिता की प्रगति आदि सम्मेलन के प्रमुख विषय थे ।
चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन 2-4 दिसम्बर, 1993 को मारीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित की गयी । इस सम्मेलन की अध्यक्षता मारीशस के तत्कालिन मंत्री श्री मुक्तेश्वर चुन्नी ने की थी तथा उदघाटन मारीशस के तत्कालिन प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ के कर कमलों से हुआ था । हिंदी की अंर्तराष्टीय स्थिति एंव इसे विश्व स्तर पर सभी के अध्ययन हेतु सुगम बनाने पर प्रस्ताव पारित किया गया । समापन मारीशस के तत्कालीन राष्टृपति श्री रवीनद्रधन बरन ने किया था ।
पंचम विश्व हिंदी सम्मेलन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट आफ़ स्पेन में 4 से 8 अप्रैल, 1996 को आयोजित की गयी । इसके प्रमुख संयोजक हिंदी निधि नामक संस्था के अध्यक्ष तत्कालीन श्री चंका सीताराम थे । उदघाटन त्रिनिदाद एवं टोबेगो के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पाण्डे ने किया था। इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री माता प्रसाद ने किया । सम्मेलन में ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त डा0 लक्ष्मीमल सिंघवी और त्रिनिदाद के शिक्षा मंत्री श्री आदेश नन्नान भी शामिल थे ।
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन 1999 में 14 से 18 सितम्बर के बीच लंदन में आयोजित हुआ। इसका आयोजन यू0 के0 हिंदी समिति, गीतांजली बहुभाषी समुदाय, बर्मिंघम और भारतीय भाषा संगम द्वारा किया गया । भारत का प्रतिनिधित्व तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने किया । उपनेता के रुप में प्रसिद्ध साहित्यकार डा0 विद्यानिवास मिश्र ने अभूतपूर्व योगदान दिया । यह सम्मेलन दो दृष्टी से मह्त्वपूर्ण था क्योंकि एक तो हिंदी साहित्य के भक्ती काल (स्वर्णकाल) के प्रतिनिधि कवि संत कबीर दास जी की छठी जन्म शताब्दी थी और दूसरे यह सम्मेलन संविधान में हिन्दी के अपनाए जाने के 50 वें वर्ष अथवा स्वर्ण जयंती वर्ष में आयोजित हो रहा था । 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और 46 हिंदी सेवी विद्वानों को सम्मानित किया गया जिसमें 20 विदेशी विद्वान भी थे ।
सातवां विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम की राजधानी पामारिबो में 5 से 9 जून, 2003 के के बीच आयोजित किया गया । आयोजक थे श्री जानकी प्रसाद सिंह और उदघाटन सूरीनाम के तत्कालीन राष्टृपति श्री रोनाल्ड वेनेत्शियान ने किया। केन्द्रीय विषय था विश्व हिन्दी – नई शाताब्दियों की चुनौतियां। भारत का प्रतिनिधित्व तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। भारत से 200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में यह संकल्प लिया गया कि 132 देशों में 80 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी को संयुक्त राष्टृ भाषा बनाने का प्रयास शुरु होना चाहिये।
आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क (अमेरिका) में 13-15 जुलाई 2007 के बीच आयोजित किया गया। यह सम्मेलन संयुक्त राष्टृ संघ के परिसर में हुआ। भारत का प्रतिनिधित्व विदेश राज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा ने किया। उन्होनें इस अवसर पर कहा कि हिन्दी बड़ी भाषा है। हिन्दी अब संयुक्त राष्टृ संघ तक पहुंच चुकी है तो यह आगे तक जायेगी। समापन समारोह में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह के विशेष प्रतिनिधि और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डा कर्ण सिंह ने विद्वतापूर्ण संबोधित किया। यह पहली बार है कि भारत में भी काम कर चुके संयुक्त राष्टृ संघ के महासचिव बान की मून ने हिन्दी में भाषण दिया। उनका सहज संबोधन प्रत्येक भारतवासी को ही नहीं अपितु विश्व के सभी हिन्दी प्रेमियों को आत्मविभोर कर गया। केन्द्रीय विषय – 'विश्व मंच पर हिन्दी' पर संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि हिन्दी के विकास की गति को देखकर हमें आवश्यक रुप से कहना चाहिये चक दे हिन्दी। अर्थात हिन्दी के पूर्ण उत्थान एवं विकास में हमें पूरी आत्मियता से कार्य करना चाहिये और इस जोश को बनाये रखना चाहिये।
हिन्दी के विश्व व्यापी प्रचार प्रसार कि लिये 10 जनवरी एक महत्वपूर्ण दिन बन गया है। इस दिन ही 1975 में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर में आयोजित किया गया था। इस स्मृति को कायम रखने के लिये सभी हिन्दी प्रेमी 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के रुप में मनाते हैं। विदेश मंत्रालय समन्वय समिति के प्रस्ताव पर निर्णय लिया गया है कि 10 जनवरी को दुनिया भर में हिन्दी दिवस के तौर पर मनाया जायेगा। इस अवसर पर विश्व हिन्दी सम्मान तथा अन्य पुरस्कार योजनाओं की भी शुरुआत की जायेगी।
विरेन्द्र कुमार यादव
सदस्य, विदेश मंत्रालय सलाहकार समिति
वर्ष 1976 में 28-30 अगस्त के बीच मारीशस की राजधानी पोर्ट लुई में द्वितीय विश्व
हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ । इसकी अध्यक्षता तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डा0 कर्ण सिंह ने की थी । इस सम्मेलन का बोध वाक्य था – "वसुधैव कुटुम्बकम"। 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया था। इसे संबोधित करने वाले विभिन्न विद्वानों में डा0 निकोल बलबीर (फ़्रांस), डा0 लोचर लुत्से (जर्मनी), डा0 फ़ादर कामिल बुल्के, श्री अमृत लाल नागर और मारीशस के युवा एवं क्रीड़ा मंत्री श्री दयानंद वसंत राय शामिल थे ।
तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 1983 में 28-30 अक्टुबर के बीच नई दिल्ली में आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने की थी। सम्मेलन में 6566 प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें 260 प्रतिनिधि विदेशों से पधारे थे । इसका समापन तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने किया था । अंर्तराष्टीय भाषा के रुप में हिंदी के प्रसार की सभावनाएं और प्रयास तथा आधुनिक भारत में हिंदी की पत्रकारिता की प्रगति आदि सम्मेलन के प्रमुख विषय थे ।
चतुर्थ विश्व हिंदी सम्मेलन 2-4 दिसम्बर, 1993 को मारीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित की गयी । इस सम्मेलन की अध्यक्षता मारीशस के तत्कालिन मंत्री श्री मुक्तेश्वर चुन्नी ने की थी तथा उदघाटन मारीशस के तत्कालिन प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ के कर कमलों से हुआ था । हिंदी की अंर्तराष्टीय स्थिति एंव इसे विश्व स्तर पर सभी के अध्ययन हेतु सुगम बनाने पर प्रस्ताव पारित किया गया । समापन मारीशस के तत्कालीन राष्टृपति श्री रवीनद्रधन बरन ने किया था ।
पंचम विश्व हिंदी सम्मेलन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट आफ़ स्पेन में 4 से 8 अप्रैल, 1996 को आयोजित की गयी । इसके प्रमुख संयोजक हिंदी निधि नामक संस्था के अध्यक्ष तत्कालीन श्री चंका सीताराम थे । उदघाटन त्रिनिदाद एवं टोबेगो के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पाण्डे ने किया था। इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री माता प्रसाद ने किया । सम्मेलन में ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त डा0 लक्ष्मीमल सिंघवी और त्रिनिदाद के शिक्षा मंत्री श्री आदेश नन्नान भी शामिल थे ।
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन 1999 में 14 से 18 सितम्बर के बीच लंदन में आयोजित हुआ। इसका आयोजन यू0 के0 हिंदी समिति, गीतांजली बहुभाषी समुदाय, बर्मिंघम और भारतीय भाषा संगम द्वारा किया गया । भारत का प्रतिनिधित्व तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने किया । उपनेता के रुप में प्रसिद्ध साहित्यकार डा0 विद्यानिवास मिश्र ने अभूतपूर्व योगदान दिया । यह सम्मेलन दो दृष्टी से मह्त्वपूर्ण था क्योंकि एक तो हिंदी साहित्य के भक्ती काल (स्वर्णकाल) के प्रतिनिधि कवि संत कबीर दास जी की छठी जन्म शताब्दी थी और दूसरे यह सम्मेलन संविधान में हिन्दी के अपनाए जाने के 50 वें वर्ष अथवा स्वर्ण जयंती वर्ष में आयोजित हो रहा था । 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और 46 हिंदी सेवी विद्वानों को सम्मानित किया गया जिसमें 20 विदेशी विद्वान भी थे ।
सातवां विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम की राजधानी पामारिबो में 5 से 9 जून, 2003 के के बीच आयोजित किया गया । आयोजक थे श्री जानकी प्रसाद सिंह और उदघाटन सूरीनाम के तत्कालीन राष्टृपति श्री रोनाल्ड वेनेत्शियान ने किया। केन्द्रीय विषय था विश्व हिन्दी – नई शाताब्दियों की चुनौतियां। भारत का प्रतिनिधित्व तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। भारत से 200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में यह संकल्प लिया गया कि 132 देशों में 80 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी को संयुक्त राष्टृ भाषा बनाने का प्रयास शुरु होना चाहिये।
आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क (अमेरिका) में 13-15 जुलाई 2007 के बीच आयोजित किया गया। यह सम्मेलन संयुक्त राष्टृ संघ के परिसर में हुआ। भारत का प्रतिनिधित्व विदेश राज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा ने किया। उन्होनें इस अवसर पर कहा कि हिन्दी बड़ी भाषा है। हिन्दी अब संयुक्त राष्टृ संघ तक पहुंच चुकी है तो यह आगे तक जायेगी। समापन समारोह में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह के विशेष प्रतिनिधि और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डा कर्ण सिंह ने विद्वतापूर्ण संबोधित किया। यह पहली बार है कि भारत में भी काम कर चुके संयुक्त राष्टृ संघ के महासचिव बान की मून ने हिन्दी में भाषण दिया। उनका सहज संबोधन प्रत्येक भारतवासी को ही नहीं अपितु विश्व के सभी हिन्दी प्रेमियों को आत्मविभोर कर गया। केन्द्रीय विषय – 'विश्व मंच पर हिन्दी' पर संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि हिन्दी के विकास की गति को देखकर हमें आवश्यक रुप से कहना चाहिये चक दे हिन्दी। अर्थात हिन्दी के पूर्ण उत्थान एवं विकास में हमें पूरी आत्मियता से कार्य करना चाहिये और इस जोश को बनाये रखना चाहिये।
हिन्दी के विश्व व्यापी प्रचार प्रसार कि लिये 10 जनवरी एक महत्वपूर्ण दिन बन गया है। इस दिन ही 1975 में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर में आयोजित किया गया था। इस स्मृति को कायम रखने के लिये सभी हिन्दी प्रेमी 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के रुप में मनाते हैं। विदेश मंत्रालय समन्वय समिति के प्रस्ताव पर निर्णय लिया गया है कि 10 जनवरी को दुनिया भर में हिन्दी दिवस के तौर पर मनाया जायेगा। इस अवसर पर विश्व हिन्दी सम्मान तथा अन्य पुरस्कार योजनाओं की भी शुरुआत की जायेगी।
विरेन्द्र कुमार यादव
सदस्य, विदेश मंत्रालय सलाहकार समिति
No comments:
Post a Comment