Saturday, May 9, 2009

क़िस्मत के सांढ़ उर्फ़ देवेगौड़ा उर्फ़ नीतीश कुमार

क़िस्मत के सांढ़। कभी लालू यादव थे आज नीतीश हैं। मुख्यमंत्री तो हैं ही, नीतीश में अब कईयों को प्रधानमंत्री वाला सिंघ भी दिखाई पड़ने लगा है। विशेष तौर पर वामपंथियों को जो अब तक लाल चश्मे से नीतीश को साम्प्रदायिकता को संपोषित करने वाला शख़्स बताया करते थे। नीतीश इनके साथ सबके चहेते राहुल को भी लगता है कि नीतीश बड़ाई के पात्र हैं। माता जी तो पहले ही कुछ मामलों में अपनी शब्द उदारता प्रदर्शित कर चुकी हैं। बेटा जी को भी लगता है कि वोटरों ने आईना दिखा दिया तो बी जे पी की बल्ले बल्ले हो जाएगी। इसलिये बेह्तर है कि नीतीश को थोड़ा पहले ही से टाप के रखा जाये।

वैसे ये क्या गज़ब हो रहा है कि नीतीश के क़द को पटना से खींच कर दिल्ली तक कर दिया गया है? पटना में बैठे नीतीश को पटियाने के लिये तमाम लोग राजनीति के चाणक्य बनने को आतुर हैं।

जाने के बा? त तनी दिमगवा पर जोर डालिये और याद कीजिए 1996 का संयुक्त मोर्चा नामक बेदिली से बने दलों के एक समूह को। कांग्रेस को बाहर रखना था, बी जे पी सरकार बनाने में विफल रही थी और ऐसे मौक़े पर देश एक अदद प्रधानमंत्री को तरसता दिख रहा था। इधर –उधर नज़र घूमाते हुए सबकी निगाहें देवेगौड़ा पर टिक गयी थीं। और चाहे अनचाहे या जीभ लपलपाते देवेगौड़ा देश के दक्खन प्रांत से आने वाले पहले प्रधानमंत्री बन गये थे। ये ग्याहरवीं लोक सभा थी। कांग्रेस के पास 136 सीटें थीं, जबकि बी जे पी के खाते में 160। और ऐसे अचकचा देने वाले हालात में देवेगौड़ा को पी एम बनाने में राष्ट्रीय मोर्चे के साथ इसी वाम मोर्चे ने किंग मेकर की भूमिका अदा की थी।

ध्यान से सोंचेंगे तो पंद्रहवीं लोक सभा के गठन के ठीक पहले की पैंतरेबाजी में नीतीश सबके अपने अपने देवेगौड़ा बनते दिख रहे हैं। सबने चुनाव लड़ा है और सरकार बनाने के मौक़े की तलाश में जुगत भिड़ा रहे हैं। लेकिन देश में गठबंधन का फच्चर फंसा हुआ इसलिये एक फेस भी चाहिये। फिलहाल नीतीश से बेहतर पालिश्ड फेस किसका हो सकता है?

ऐसे सुअवसर पर राजनीति के साथ-साथ कुछ गणित का भी ज्ञान हो तो इस समीकरण पर ग़ौर फ़रमाएं -

वाम मोर्चा + क्षेत्रिय दल + देवेगौड़ा – बी जे पी – कांग्रेस = नीतीश कुमार

लेकिन नीतीश इतने ‘वो’ तो हैं नहीं कि आसानी वैसे बन जाएंगे जैसा कि लोग चाहते हैं। प्रधानमंत्री बनने की ललक तो दिखती है मगर सौफिस्टिकेटेड हैं इसलिये पूछे जाने पर सकुचाते हुए प्यार से नकार जाते हैं। वैसे लाल गुरुघंटालों ने जब इतना फ़ेवर कर दिया है तब नीतीश ने भी उनके बाबत अपने सुर-ताल दुरुस्त कर लिये हैं। भले ही मामला न्यूक्लियर डील का हो।

इसलिये नु कहते हैं कि ए नीतीश जी जरा पिछ्वाड़े जा कर बगलगीरो को धन्यवदवा देते आइएगा। काहे से कि न तो उ मैडम के कुनबा से बिगाड़ लेते और न आपके माथे पर ताज सजावे के तैयारी करता सब लोग।

वैसे एगो आकलन ई भी है कि 2009 में 1996 की अपेक्षा हालात बदले हुए हैं। नीतीश मुख्यमंत्री हैं, बड़ी मुश्किल से बड़का भइया को सूबे से बाहर करने में सफ़ल हुए हैं। जानते है कि बड़का कुर्सी में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई तो हाल कहीं ये ना हो जाए कि न तो ख़ुदा मिला न ही विसाले सनम। यानी देवेगौड़ा बन के प्रधानमंत्री बन गये तो देवेगौड़ा वाला ही हाल ना हो जाए। इस लाल सलाम का कोई भरोसा नहीं है। आज सलामी ठोंकी कल ही छौ अंगुर छापने पर लग जाएंगे। याद ही होगा कि देवेगौड़ा 1996 में नौ महीने तक ही टिक पाए थे।

लगे हाथ इस पर भी चर्चा कर लेते हैं कि अगर नीतीश हस्तिनापुर की राजगद्दी पाने की लालसा में या भरोसे में बोरिया बिस्तर समेट लेते हैं तो मगध में ही महाभारत शुरु हो जाएगा। अपनी पार्टी में तो कोई दिखता नहीं है और बी जे पी को टा टा बाय बाय बोला तो दुस्सर दिगदारी शुरु हो जाएगा। 16 महीना बाद बड़का भईया के चांस खुल जाएगा। बी जे पी का समर्थन मिल भी जाता है तो मोदी हड़बड़ाते हुए गद्दी सरिया के संभाल पाएंगे कि नहीं ई भी सोंच के कै गो के माथा दुखाए लगता है।


लेकिन सवाल ये भी है कि लालू जी आजकल हैं कहां? वो भी रहे हैं क़िस्मत के सांढ़ । जब थे तब उनके एक इशारे पर जिन्न निकल आते थे और विरोधी दुम दबा के पतली गली से निकल पड़ते थे। लालू को लगता था, आज नहीं तो कल देश के मुखिया बनिये जाएंगे। तब लालू किस्मत के सांढ़ो थे, साथे-साथे हाथियो थे। सबको बुड़बक बूझ के हड़काते रहते थे। चाहे मुंह बाए खड़े पत्रकार हों या फिर टुकुर-टुकुर ताकने वाले लोग बेचारे। जब लालू चुप सब चुप, जब लालू हंसे सब हंसे। लालू के यहां सबों की क़ीमत सब धान बाइस पसेरी समान थी। 20 साल तक चलता रहा। समय बदल रहा है। लालू के बारे में राय बदल रही है। पता नहीं ये सब देख कर लालू की राय बदल रही है या नहीं। ज्यादा नहीं तो कुछ जायजा 16 मई के बाद मिल जाएगा। लेकिन लालू के एक्के बार में कौन राईट आफ़ कर सकता है? ब्रह्मा जानते होंगे। मिलेंगे तो जरुरे से पूछेंगे।

Post Script: तो बिहार की चांदी होती दिख रही है। यहां दो-दो क़िस्मत के सांढ़ अब हो गये हैं। कौन बनेगा प्रधानमंत्री? हमनियो के दावा है। ठोके में का जाता है।

अमिताभ हिमवान

2 comments:

Radha Rani said...

आपने जो लिखा है एकदम सही लिखा है,
इसी प्रकार आप लिखते रहें।

atul said...

accha hai 15 saal tak u hi nitish hi ksmat ke"sandh","hanthi","whale" sab bane rahe..kam se kam laloo ji se to jayada hi kaam karenge..hai ki nahi..