Saturday, October 25, 2008

एक खुला पत्र प्रभु के नाम

बधाई हो प्रभुनाथ जी, बधाई हो! एक बार फिर यह सत्य हो गया कि "समरथ को नाहिं दोष गुसाईं" आखिर सरकार आपकी है, कोर्ट आपका है तो जाहिर है कि फैसला भी आपका ही हो। दीपावली के शुभ मौके पर शायद ही कोई ऐसी सूझ बूझ की खरीदारी करता है जैसा आपने किया है. रकम की बात तो उल्लेखित नहीं किया जा सकता माल खरा सोना मिला है . दो मासूमों की हत्या के सारे साक्ष्य रहने के बावजूद पैसे के बल पर ही सही आपने न्याय को अपना गुलाम बना ही लिया. इसके लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाय वह कम ही होगी .

आपको याद होगा बरसों पहले मैट्रिक में एक पाठ्य पुस्तक हुआ करता था जिसका नाम कहानी संकलन था. उस पुस्तक में एक कहानी थी "नमक का दारोगा". आशा है आपने अवश्य पढ़ा होगा क्यूंकि अनपढ़ तो आप है नहीं और पढ़े लिखे अनपढ़ की कल्पना करना भी व्यर्थ होगा . आपने पढ़ा होगा उस कहानी में एक पात्र था जिसका संबंध सवर्ण समाज से था. ऐसे भी प्रेमचंद हमेशा सवर्ण समाज के स्वर्णमयी इतिहास के ध्वजावाहक रहें है सो इस पर टीका टिप्पणी करना बेकार ही होगा. पंडित आलोपीदीन का चरित्र आप पर ही पूरी तरह सटीक बैठता है .
आपको यह एहसास होगा कि आपके अन्दर भी देवत्व के पूरे अंश विद्यमान हैं , यह आपके नाम से सभी सुस्पष्ट है. आप तो देवताओं के भी नाथ हैं सो आपकी महिमा अपरंपार है. आप नित दिन अपने पैरों तले नैतिकता का दमन करें, प्रभुनाथ शब्द कि महत्ता को सत्यापित करें ऐसी हमारी शुभकामना है. एक बात तो सत्य है जैसे बूंद-बूंद तालाब भरता है, वैसे पुण्य की गठरी भी भारी होती जाती है. ख्याल रखियेगा कहीं आपके पुण्य की गठरी इतनी भारी न हो जाये कि आप इसे उठाने में सक्षम ही न हों.

खैर आप को इस बार की दीपावली जरुर रास आयेगी और आप जमकर राइफलों से धुएं उडायें और हो सके तो कुछ लोगों को भू लोक के जंजाल से मुक्त करायें ताकि धरती का बोझ कुछ कम हो सके. इसके लिए आपकी सरकार तो आपका आभार मानेगी ही और न्यायपालिका भी आपके गुण गायेगी .


एक पापी नवल किशोर कुमार

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