Saturday, November 1, 2008

महापर्व छठ




आस्था के महापर्व छठ की तैयारियाँ शुरु हो गई है। बाज़ारों में छठ पूजा के सामान बिकने लगे हैं। चार दिनों का यह महापर्व रविवार से शुरु होगा।
सूर्य-षष्ठी अथवा छठ-पूजा सूर्योपासना का महोत्सव है। इस पर्व को लेकर बाज़ार सज गये हैं। इसमें नये चूल्हे पर प्रसाद बनाया जाता है। श्रद्धालु मिटटी के चूल्हों पर प्रसाद बनाते हैं। सड़क किनारे नये मिटटी के चूल्हों की दूकाने सजी हुई है। खरीददार मोलतोल कर चूल्हे घर ले जा रहे हैं। इस पर्व में पवित्रता का बड़ा महत्व होता है। कार्तिक मास के प्रारम्भ होते ही छठ पूजा के लिए माहौल बनने लगता है। चार दिनों के इस पर्व की शुरुआत नहा खा से होती है। इसके बाद खरना होता है। उस दिन व्रतधारी सारे दिन भूखा रहकर शाम को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से खीर बनाते हैं। उसे केले के पत्तल पर प्रसाद चढ़ाकर व्रतधारी पहले परिवार के अन्य सदस्यों को खिलाते हैं, उसके बाद स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं। श्रद्धालु छठी माता से अपने और अपने परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद माँगते हैं। कुछ लोग मन्नत पूरा होने पर छठ पर्व मनाते है।
षष्ठी की प्रात: वेला से ही अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देने की तैयारी आरंभ हो जाती है। ठेकुआ, कसार के साथ अदरक, मूली, ईंख, अरवी और नीबू जैसे मौसमी फलों से बाँस के सूप में प्रसाद सजाया जाता है। इसे निखण्ड कहते हैं। सूर्यास्त के समय व्रतधारी फल-फूल से सजे सूप को लेकर पश्चिम दिशा में मुख करके पानी में खड़े हो जाते हैं और सूर्य देव को नमन करते हैं। इसे सांध्य अर्ध्य कहते हैं। सूर्य अस्त होने के बाद व्रतधारी अपने घर लौटते हैं। अगली सुबह व्रतधारी फिर से स्नान कर नए व्रत धारण कर सूप को नए सिरे से सजाकर फिर से पूजा स्थल के लिए निकलते हैं। पूजा स्थल हमेशा नदी या तालाब का किनारा ही होता है। बीते शाम की तरह फिर उसी पूजा स्थल पर पानी में खड़े हो कर व्रतधारी उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देते हैं। सूर्योदय के बाद व्रतधारी घर लौटकर घर के देवताओं का पूजन करके अदरक मुंह में डालकर व्रत खोलते हैं। इस तरह छठ पूजा का मुख्य अनुष्ठान चार दिनों तक चलता है। इस पूजा में साफ- सफाई पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाता है।
छठ सूर्य की पूजा है। यह एकमात्र पर्व है, जब न सिर्फ उगते हुए, बल्कि डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है। वैसे भारत में सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। अथर्ववेद पर आधारित सूर्योपनिषद में तो सूर्य को ही ब्रह्मा माना गया है, क्योंकि उसी से यह जगत परिचालित होता है।

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