Wednesday, April 29, 2009

प्राण जाये पर वोट ना जाये


चेन्नई के निकट हुए रेल हादसे में सात लोगों की मौत हो गयी और तक़रीबन बीस यात्री घायल हो गये। ख़बर बनी है भारत में एक और रेल हादसा …इसमें नई बात क्या है, ये तो हादसों का देश है। इतने बड़े देश जिसके भू-भाग में जापान, कोरिया, ब्रिटेन, स्वीडन जैसे कई देश समा जाएं और कोई फ़र्क़ भी ना पड़े ऐसे में किसी एक कोने में सात लोग मारे जायें तो समझो उनके दिन पूरे हो गये थे और वो इहलोक को त्याग कर सांसारिक कष्टों से मुक्त हो गये। लेकिन मान लें कि आपको पता चले कि जिस रेलगाड़ी में आप बैठे हैं उसके चालक के नाम-पता की जानकारी स्वयं रेलवे के बाबुओं को नहीं है। यानी जो चालक, नीतीश जब रेल मिनिस्टर थे तब उन्होनें रेल चालकों को पाइलट नाम दिया था, आपकी रेल पूरी रफ़्तार से दौड़ा रहा है वो कौन है किसी को नहीं मालूम है तब आपकी धड़कनें हादसे से पहले बंद होने के हालात में आ जाएंगी या नहीं। ऐसा ही हुआ होगा कई यात्रियों के साथ बुधवार की सुबह 5 बजे जब चेन्नई के पास मूर रेल काम्प्लेक्स रेलवे स्टेशन से एक लोकल पैसेंजर ट्रेन धड़धड़ाती हुई चल पड़ी लेकिन ड्राइवर वहीं खड़ा रहा। किसी को समझ नहीं आया कि ट्रेन दरअसल चल कैसे पड़ी। इससे पहले कि कुछ किया जा सके काफी देर हो चुकी थी। ट्रेन कुछ किलोमीटर दौड़ कर उपनगरीय इलाके व्यासरपाड़ी जीवा में जाकर एक खड़ी मालगाड़ी से टकरा गयी।

अब हादसा तो हो गया। किसी पर गाज गिरनी ही थी सो असल चालक महोदय जो खुद हतप्रभ थे उन पर एफ़ आई आर दर्ज़ हो गया। लगे हाथ रेल मंत्री और हमारे मैनेजमेंट गुरु लालू यादव ने जांच के आदेश भी दे दिये। ऐसे समय के लिये हमारे यहां की एक रीत है। वो ये कि दुर्घटना चूंकि हो गयी है तब कुछ राजनीति भी होनी चाहिये। सो नीतीश बाबू ने अपने राजनीतिक सखा/ दुश्मन/ बड़े भैया को लपेटा। उन्होनें हमलावार तेवर दिखाते हुए इस घटना के साथ रेलवे की तमाम परेशानियों की जड़ लालू को बता डाला। नीतीश ये भी नहीं भूले कि चुनाव से बेहतर कौन सा वक्त हो सकता है जब अपनी पीठ थपथपाते हुए विरोधी को आड़े हाथों लिया जा सके। सो चढ़ बैठे। कहा कि रेलवे में उनके किये धरे को लालू बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। सात लोग की जान निकल गयी लेकिन चुनाव जीतना जरुरी है सो मौके पर मुद्दा मिला है हमले करो। हालांकि ये वही नीतीश हैं जिन्होनें ऐसी ही एक दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। लालू भी कम नहीं हैं जांच के आदेश देने तक की जिम्मेवारी निभा ली। अब उनके लिये जरुरी ये था कि तीसरे चरण के मतदान में पहले अपनी जीत सुनिश्चित कर लें और आखिरी दौर के लिये समय का सदुपयोग करते हुए प्रचार में जुट जाएं।

सही भी है मौत जिनकी होनी थी हो गयी। प्राण तो उनके लौटाये जा नहीं सकते सो जो ज़िन्दा हैं कम से कम उनके वोट तो लिये ही जा सकते हैं। प्राण जाये पर वोट ना जाये। अच्छी सिक्वेल बनेगी।

दोस्तों, हादसों के इस देश में राजनीति की पटरी बिछी हुई है। यहां ज़िन्दगी की रेल कब डी रेल हो जाये, हम नहीं जानते ।


अमिताभ हिमवान

2 comments:

atul said...

sahi hai...ek dam sahi hai.rajniti pata nahi ye word kiske banaya?par jo bhi banaya sahi banaya..par rajnetao ko bhagwan bhi sahi nahi bana sakte..ufff

Anonymous said...

bhai,
badhiya likha. is blog par old post bhi dekha. kafi starye hain.
hum chahaten hain ki kyon ek team banayi jaye jo bihar ke sambandh me kuchh behtar likhen. aapka ek manch hai.iska upyog ho sakata hai.
pata nahi moderator kya chahati hain. is par niyamit post bhi aana chahiye.
biendra yadav