Monday, April 27, 2009

मुखड़ा क्यूं है उखड़ा?


लालू यादव के चेहरे से हंसी गायब है। पिछले कुछ दिनों से लालू खीझ ज्यादा रहे हैं। उनका खीझना साफ- साफ दिख रहा है। पत्रकारों के सवालों के जवाब या तो कमतर शब्दों में दे रहे हैं या फिर सवाल करने वाले पत्रकार को जवाब डपटने के अंदाज में दे रहे हैं। एक पत्रकार महोदय जो बिहार में इलेक्शन कवर करने बाहर से आये हैं उन्होनें जब प्रणव मुखर्जी के बयान पर जवाब मांगा तो लालू ने उनकी बोलती यह कह कर बंद करवा दी की वो इस चिंता से मरे ना जाएं और बेहतर होगा कि राजनेताओं के चक्कर में ना पड़ें। वोटर सुन लें तो यही कहेंगे कि लालू ने ठीक ही कहा नेताओं के चक्कर में पड़ कर ही देश का ये हाल हुआ है। साहेब को अंदाजा लग रहा है कि नतीजे तयशुदा और मन माफिक नहीं आने वाले हैं। बड़बोले तो थे ही इस बार के चुनाव में उन्होनें अपनी धर्म पत्नी के साथ मिल कर कई अतिश्योक्तियां ही रच दी। नीतीश-ललन को राजनैतिक साझेदार से साला-साढ़ू बना डाला। हालांकि कहा तो राबड़ी ने पर लालू ने भी चुप्पी साध कर मौन समर्थन दे दिया।
कांग्रेस की तो फजीहत ही कर डाली। बेचारी कांग्रेस जो अब तक धर्मनिरपेक्षता को अपना सबसे बड़ा यू एस पी मानती थी उसे लालू ने सवालों के घेरे में डाल दिया। पहले तो कहा कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस के पीछे कांग्रेस भी जिम्मेवार है लेकिन जैसे ही प्रणब मुखर्जी ने अगले मंत्रिमंडल से बाहर कर देने की धमकी दी तो उन्हें लगा की भूल हो गयी। लालू लगे स्वर्गीय नरसिम्हा राव का नाम लेने कि उनकी तत्कालीन कांग्रेसी सरकार को कहा सोनिया मैडम वाली अपनी सरकार को नहीं कहा। वैसे लालू कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं कुछ भी कहा होगा तो नफ़ा-नुक्सान देख कर ही कहा होगा। भले ही वरुण गांधी पर रोलर चलवाने वाली बात हो। वोट बैंक के तकाजा का उनको बेहतर भान है। बीस साल हो गये हैं उनको यहां- वहां राज करते और तकरीबन चालिस हो गये राजनीति में।
लेकिन आपने लालू का ऐसा उतरा चेहरा कभी नहीं देखा होगा। मानो आडवाणी की कुंडली के बजाय अपनी कुंडली पर फिर से एक गहरी नज़र डाल ली हो। नहीं तो वो ऐसा शायद ही कहते है कि सबके भाग्य में प्रधानमंत्री बनना नहीं लिखा है, जूता घिस जाता उम्मीद करते करते। जबकि कल तक लालू एंड वाईफ यही दुहरा रहे थे कि प्रधानमंत्री तो बनना ही है। दो फ़ेज चुनाव हो चुका है और बयार कम से कम लालू के पक्ष में बहती तो नहीं ही दिख रही है। तेज फुसफुसाहट तो ये भी है हाजीपुर में सहयोगी पासवान को धक्का पहुंचने वाला है और छपरा में खुद लालू को छप्पर फाड़ कर वोट नहीं मिला है।
पाटलिपुत्र का टेस्ट अंतिम चरण में होगा और वहां एक और जात भाई ख़िलाफ़ में कालर खड़ा किये हुए हैं। तो बंधुओं, क्या बात है कि जो लालू यादव लाफ़्टर चैलेंज के बड़े-बड़े सूरमाओं को अपनी हंसोड़ बुद्धि से पानी पिला-
पिला कर हराने की ताक़त रखते हैं उखड़ा-उखड़ा सा मुखड़ा लिये घूम रहे हैं? जरा आप ही बता दें। वैसे मेरा तो जवाब है कि राजनीति लाफ़्टर चैलेंज बिल्कुल नहीं लेकिन लालू ने इसे वैसे मान कर सबसे बड़े लोकतंत्र में राज करने की ज़ुर्रत की। यहां तो क़ीमत मजाक करने और समझने वाले को ही अदा करनी पड़ती है और एक वक्त आता है जब दर्शक तालियां तो पीटता है लेकिन बटन कहीं और दबा डालता है।
अमिताभ हिमवान
Correspondent

2 comments:

bihari khichady said...

aapka post padha. badiya laga.lekin kundha se bhara hua hai. vishleshan ekdam ektarafa hai. bihar ko janane vale janate hian ki media barabar lalu ke khilaf raha hai. is bar bhi aisa hi hai.
bihar ke media ka farward upper caste ki labi ek sajish ke tahat lalu ke khilaf abhiyan chala raha hai. aap bhi usase alag nahin hain.
fir bhi hum aapko badhai dete hain ki aapne apne jatiye aagrah ko puri imandari se nibhaya hai.
thanks

birendra yadav
kumarbypatna@gmail.com
09304170154

atul said...

bhaiya...jo bhi likha hai sahi hai,jo bhi kah lo lalu ji ko agar kuch karna hota to 15 saal pahele kar chuke hote..ham yuva ab bas vikash chahte hai isliye jo philhal nda sarkar kar rahi hai.ex-15 saalo main maine itna accha road nahi dekha.haan kam slow hai par 15 saal ka bigra banane me bhi 20 saal se kam nahi lagega..kyun ki bigarna aaasan hai par banana bahut moskil..